चलचित्र

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सामान्य रूप से सिने-कला को हमारे समाज में नीची नजर से देखने की परम्परा रही है। लेकिन यदि ईमानदारी से सोचा जाये तो सिने-कला समस्त चाक्षुस एवं प्रदर्श कलाओं का संगम, बल्कि उससे भी कुछ आगे है। इसमें संगीत है, नृत्य है, नाटक है, रंग है, स्थापत्य मूर्ति कला है- क्या नहीं है ? और जो भी है वो अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में विद्यमान है, चाहे संगीत हो नृत्य हो, अभिनय हो, कुछ भी हो। इस विधा से जो भी लोग जुटे हुये हैं वो सब अपने अपने क्षेत्र के दिग्गज कहे जा सकते हैं। ये सभी कलाकार मिल जुलकर तीन घंटे की काल्पनिक कथा को रजत पट पर जिस प्रकार मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत करते हैं- यह आश्चर्यजनक हैं तो यह मानने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिये कि सिने-कला आज की सभी कलाओं में अग्रगण्य है, तथा इसके माध्यम से कोई भी संदेश पूरी दुनिया में सरलता से प्रेषित किया जा सकता है, कोई भी संवाद स्थापित किया जा सकता है। इसके अन्य गुणावगुणों पर विचार करना इस लेख का अभीष्ट नहीं है।

बहरहाल इस पृष्ठभूमि में आइये अब देखें कि झारखण्ड में सिने-कला का संक्षिप्त इतिहास क्या है। राजकपूर ने विश्व प्रसिद्ध फिल्मों का निर्माण किया किंतु बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि राजकपूर के एक फाइनेन्सर हेमेन गांगुली राँची के ही निवासी थे। हेमेन गांगुली ने राँची में प्लाजा, रतन टाॅकीज एवं रूपा-श्री नाम से तीन सिनेमा गृहों का निर्माण भी कराया था।

इसी प्रकार राँची महिला महाविद्यालय की बगल वाली गली में सामंत विला नामक बंगला, देश के प्रसिद्ध निर्माता-निदेशक शक्ति सामंत का है, जिन्होनें हावड़ा-ब्रिज, कटी-पतंग, आराधना, अनुराग, अमर प्रेम आदि जैसी सफल फिल्मों का निर्माण किया। इस तथ्य से भी कम लोग ही परिचित होंगे। इनके छोटे भाई स्व0 गिरिजा सामंत भी एक्सीक्यूटिव प्रोड्यूसर के रूप में फिल्म निर्माण से जुड़े रहे।

इस बात से भी कम ही लोग अवगत होंगे कि प्रसिद्ध निर्माता निदेशक विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी (गिरिडीह) तथा मोहन जी प्रसाद भी झारखण्ड के निवासी हैं। इसी प्रकार प्रकाश झा ने भी झारखण्ड की धरती पर हिप-हिप हुर्रे, लोकनायक जयप्रकाश तथा निर्माता निदेशक शत्रुध्न सिन्हा भी कोयला माफिया विषय पर धनबाद में कालका फिल्म का निर्माण कर झारखण्ड से जुड़े।

अनीस रंजन भी झारखण्ड की वो विभूति हैं जो हाल में ही कैश तथा दिल पे मत ले यार जैसी फिल्मों से प्रोडयूसर के रूप में जुडे़ रहे।

झॉलीवुड झारखंड का सिनेमा है जो मूल रुप से झारी भाषा की फिल्मों का निर्माण करता है।इसके अलावा खोरठा भाषा एवं संथाली में भी फिल्में बनती हैं। प्रथम नागपुरी चलचित्र सोना कर नागपुर था। जो १९९४ में प्रदर्शित हुआ जिसका निर्माण धनन्जय सिंह ने किया।[2] भारतीय सिनेमा में झारखंड के सिनेमा के आ जाने के बाद कलाकारों को अधिक काम मिलना प्रारम्भ हो गया तो झारखंड में बडे बडे फिल्म कार्यक्रम होने लगे। झारखंड में फिल्म निर्माण को बढाने के लिए झारखंड सिनेमा को झॉलीवुड नाम दिया गया। आज 100 वर्ष के भारतीय सिनेमा के इतिहास में झॉलीवुड का अपना महत्व है। प्रमुख फिल्में:- सोना के नागपुर प्रीत सजना अनाड़ी तोर बिना

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